◆ संक्षिप्त परिचय : पित्त के नीचे पित्ताशय स्थित होता है जिसमें पाचक पित्त जमा होता है और यही पाचक पित्त छोटी आंत में जाकर पाचन- क्रिया में...
◆ संक्षिप्त परिचय : पित्त के नीचे पित्ताशय स्थित होता है जिसमें पाचक पित्त जमा होता है और यही पाचक पित्त छोटी आंत में जाकर पाचन- क्रिया में सहायक होता है। पित्ताशय में ही पित्त पथरी निर्माण करने वाले चर्बी (कोलेस्ट्रोल) का संचय होता है।
यह चर्बी (कोलेस्ट्रोल) पित्ताशय में जमा पित्त में घुलनशील होता है लेकिन कई बार कब्ज , अम्लता , अनियमित, असन्तुलन, जल्दी न पचने वाले भोजन, शराब , मांसाहार भोजन आदि के कारण पाचनक्रिया खराब हो जाने के कारण पित्ताशय में कोलेस्ट्रोल नहीं घुल पाता जो धीरे-धीरे संचित होकर पथरी का रूप ले लेता है।
इस तरह उत्पन्न पित्त में बनने वाली पथरी को पित्तपथरी कहते हैं। शुरुआत में पथरी बालू के कण की तरह होती है लेकिन जब पथरी में दूषित पदार्थो मिलने लगने से यह बढ़ जाती है।
छोटे आकर की पथरी मल के साथ निकल जाती है और रोगी को इनके होने का पता भी नहीं चलता किन्तु जब बड़े आकर की पथरी पित्तनली के अन्दर प्रवेश करती है तो बहुत ही परेशानी होती है और जब तक ये पथरी साधारण पित्त प्रणाली के रास्ते से हट नहीं जाती या आन्तो के भीतर नहीं पहुंच जाती तब तक यहां दर्द होता रहता है।
◆लक्षण(Symptoms) : पित्तपथरी के शुरुआत अवस्था में बेचैनी सी महसूस होती है और फिर पेट में दर्द नाभि के ऊपर या दाहिनी ओर नीचे की तरफ पित्ताशय के आस-पास मालूम होता है। सुबह खाना-खाने के बाद दर्द शुरू होता है और उल्टी होने के बाद शांत हो जाता है।
रोग अधिक पुराना होने पर व्यक्ति को खाना-खाने की इच्छा नहीं होती है और पेट का दर्द भी बढ़ जाता है। पथरी बड़ी होने पर पूरे पेट में दर्द होने लगता है और कभी-कभी यह दर्द दाहिने कंधे तक बढ़ जाता है
यह दर्द ऐंठन जैसा होता है जो अचानक ही शुरू होता है और कुछ घंटो तक ऐसे ही रहता है। पित्तपथरी में तेज दर्द के साथ उल्टी भी हो सकती है। पथरी के पित्तनली में अटक जाने से कई बार चक्कर और तेज बुखार भी हो जाता है। अल्ट्रासाउण्ड के द्वारा पथरियों की संख्या का पता किया जा सकता है।
◆भोजन तथा परहेज :
परवल , जौ , छिलके वाले मूंग की दाल, चावल , तुरई , लौकी ,करेला , मौसमी , अनार , आंवला, मुनक्का , ग्वारपाठा , जैतून का तेल आदि का सेवन करना लाभकारी होता है। सादा भोजन, बिना घी- तेल वाला और आसानी से पचने वाला भोजन करना चाहिए।
पित्तपथरी के रोग से पीड़ित रोगी को योगाभ्यास करना
चाहिए।
शराब, नशीले पदार्थ, मांसाहार, उड़द , गेहूं , पनीर, दूध की मिठाइयां, नमकीन, तीखे मसालेदार, तले हुए पदार्थ, डोसा, ढोकला आदि का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि अधिक चर्बी, मसाले एवं प्रोटीन के सेवन से जिगर व प्लीहा (तिल्ली) रोग उत्पन्न होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि खून का शुद्धिकरण सही रूप से नहीं हो पाता है।
◆उपचार(Herbal Treatment) :
1. बादाम : 6 पीस बादाम गिरी, 6 पीस मुन्नक्का, 4 ग्राम खरबूजा, 2 पीस छोटी इलायची, 100 ग्राम मिश्री को बारीक पीसकर आधा कप पानी में मिलाकर सेवन करें। इससे पित्ताशय के रोगी देने से पित्ताशय की पथरी से आराम मिलता है ।
◆बचाव (Precaution) :
पित्ताशय की पथरी की उत्पत्ति का सम्बन्ध विभिन्न
स्राविक ग्रन्थियों की क्रियाशीलता से होती है। गलत आहार - विहार, वात - पित्त - कफ दोष बढ़ना, शरीर की पाचन प्रणाली और स्राविक प्रणाली के ठीक से कार्य न करने के कारण दूषित पदार्थ मूत्रादि में घुलकर निकलने की बजाय गुर्दे या पित्ताशय में संचित
होकर मूत्रपथरी या पित्तपथरी का रूप ले लेती है। इसलिए खाने और पीने की चीजों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।