हेल्थनेचर : खाने वाले रंगों के नाम,व उनके दुष्प्रभाव, रंगों के प्रयोग से खाद्य पदार्थों में बढ़ता जहर( Increasing poisonous effect of food co...
हेल्थनेचर : खाने वाले रंगों के नाम,व उनके दुष्प्रभाव, रंगों के प्रयोग से खाद्य पदार्थों में बढ़ता जहर(Increasing poisonous effect of food coloring)
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि गरमा गरम जलेबी, लड्डू में पड़ा पीला रंग, शीतल पेय, आइसक्रीम, कैचप और जैम इत्यादि में. इस्तेमाल होने वाले विभिन्न रंग तथा होंठों को रंगने वाली लिपस्टिक से कैंसर जैसा जानलेवा रोग हो सकता है।
थनकम्मा जैकब द्वारा लिखित पुस्तक ‘पायजन्स इन आवर फूड’ में बताया गया है कि खाद्य पदार्थों में स्वीकृत कोलतार रंगों में सबसे अधिक उपयोग में आने वाला रंग ‘अमरैंथ’ है। इसका इस्तेमाल शीतल पेय, कैचप, जैम व आइसक्रीम, औषधियों तथा लिपस्टिक जैसे अन्य सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है। परन्तु अध्ययनों से अब पता चला है कि इससे कैंसर, प्रजनन शक्ति का कम होना तथा गर्भस्थ शिशु की मृत्यु तक हो सकती है या जन्म से ही शिशु में विकलांगता पैदा होने का खतरा बना रहता है। अतः अब अनेक देशों में इस रंग के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अधिकृत रंगों की अपनी सूची में से इस रंग का नाम हटा लिया है।
सस्ता और आसानी से मिलने वाला पानी में घुलनशील रंग ‘ मेटालिन येलो’ कोलतार से ही बनता है। इससे अल्सर, खून की कमी, शुक्र ग्रंथि का ह्रास तथा कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं।
● रंगों के प्रकार (Types of colors)
आमतौर पर खाद्य पदार्थों में दो प्रकार के रंगों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें वैध और अवैध, दो वर्गों में बांटा जा सकता है। केवल दस रंगों को ही खाद्य पदार्थों में मिलाने की अनुमति दी गई है, जो वैध कहलाते हैं।
इनके व्यापारिक नाम -
अमरैंथ (बैंगनी) कारमोइसीन, इरिथ्रोसीन, (गुलाबी ) , फास्ट रेड ई., पेंसी आई 4 आर, सनसेट यलो (एफ.सी. एफ.) टैट्राजीन, इंडिगो, कारमीन, ग्रीन बी और फास्ट ग्रीन (एफ. सी. एफ.) ।
इनमें से सनसेट यलो, कारमोइसीन और टैट्राजीन रंगों का सर्वाधिक प्रयोग होता है।
जिन अवैध रंगों को खाद्य पदार्थों में मिलाने की अनुमति नहीं दी गई है, उनकी संख्या 18 है। लेकिन इनमें से 8 रंगों का ही इस्तेमाल अधिक किया जाता है।
इन्हें मैटेनिल यलो (गऊ ब्रांड पीला रंग) , मैकालाइट (हरा) , सूडान-3 (लाल), कांगो रेड (लाल), ब्लू बी. आर. एस., ओरमिन (पीला) , मेटानिल औरेंज -2 (केसरी ) , लेड क्रोमेट नामों से जाना जाता है। हलदी को लेड क्रोमेट से भी रंगा जाता है। इन रंगों में सबसे अधिक मैटेनिल यलो का उपयोग जलेबी , मिठाई आदि खाद्य पदार्थों में किया जाता है।
वैध रंगों का मूल्य अवैध रंगों की अपेक्षा कहीं अधिक होने के कारण खाद्य पदार्थों में अवैध रंगों का व्यापक स्तर पर प्रयोग किया जाता है। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने संबंधी कानून के अंतर्गत प्रतिवर्ष दर्ज होने वाले 30 हजार से अधिक मामले, केवल रंगों की मिलावट के ही होते हैं।
दालों में अरहर की दाल में ही अधिक मात्रा में रंग का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा मसालों-पिसी हुई मिर्च, हलदी, हींग आदि में लगभग 60 प्रतिशत अवैध रंग मिले होते हैं।
● वैध रंगों से भी हानि (Damage from legitimate colors)
अमेरिका की ‘फूड एंड ड्रग एडमिनेस्ट्रशन रिपोर्ट’ से ज्ञात हुआ है कि वैध रंगों में गिने जाने वाला रंग ‘अमरैंथ’ प्रसाधनों और औषधियों में सर्वाधिक प्रयुक्त किया जाता है। इसके अलावा वैध रंग ‘कारमोइसीन’ से पाचन संस्थान की तकलीफें, ‘ सनसेट’ से अतिसार व बुद्धि का ह्रास, ‘टेट्राजीन’ से एलर्जी व अतिसार, ‘ ग्रीन बी’ से चर्म रोग, ‘ फास्ट ग्रीन’ से ट्यूमर, ‘पेंसी आई 4 आर’ से रक्त की कमी हो सकती है।
सर्वाधिक इस्तेमाल में लिए जाने वाले गऊ छाप पीले रंग के बारे में यह साबित हो चुका है कि इससे पुरुषों की जनन ग्रंथियों पर असर होता है, जिससे कम शुक्राणुओं का निर्माण होता है। मक्खन को रंगने वाला पीला रंग जिगर की बीमारी ‘सिरोसिस’ पैदा करता है। शकर में अधिक सफेदी लाने के लिए अकसर डलसिन और सोडियम साइक्लेमट का उपयोग किया जाता है, जिससे हड्डियां गलने और छयरोग होने की संभावना बनी रहती है।
मैटानिल रंग के दुष्परिणाम से पाचन-क्रिया की गड़बड़ी, गले का दर्द, मुंह में छाले होना, शरीर पर जगह-जगह काले धब्बे प्रकट होना, दमा, हड्डियों का गलना जैसी कष्टप्रद बीमारियां हो सकती हैं। महिलाओं की प्रजनन शक्ति का प्रभावित होना और अलसर व कैंसर जैसी तकलीफें भी इस रंग के सेवन से पैदा हो सकती हैं।
● दुष्परिणामों से कैसे बचें? (How to Avoid Side Effects?)
मिठाइयों और अन्य खाद्य पदार्थों में मिले हानिकारक रंगों से होने वाले दुष्प्रभावों से बचने के लिए बहुरंगी मिठाइयों व खाद्य पदार्थों का कम से कम उपयोग करें और यदि करना ही पड़े, तो प्रसिद्ध दुकानों से ही उत्तम क्वालिटी की खरीदें।
जहां तक संभव हो, घर पर ही मिठाइयां और शाकाहारी व्यंजन बनाएं। उनमें देसी शकर, गुड और प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करें।
मिठाइयों को यदि मन मुताबिक रंग व स्वाद देना आवश्यक हो, तो फलों के स्वाद तथा रंग वाली मिठाइयां बनाएं। जैसे-संतरे के छिलके पीस कर डालने से मिठाई का रंग व स्वाद, दोनों ही संतरे जैसा लगता है।
सब्जियों को रंगीन व आकर्षक बनाने के लिए कद्दूकस करके गाजर, हरा पपीता, मूली, शलजम आदि मिला देने से वे बहुरंगी व जायकेदार हो जाती हैं।